Gulnar "Musafir" with Love Shayari (गुलनार "मुसाफ़िर", लव वाली शायरी)
सोमवार, 12 दिसंबर 2022
आम से भी ऊपर
वो कोई परी या नूर नहीं है
वो आम इन्सान है, आम औरत
वह आम औरत ही मेरे लिए बहुत कुछ है।।
इशारा दिया उसने
वो बताती थी इशारा किया करती थी
मैं बेवकुफ समझ कर भी समझ न सका।।
ख्याल आना
जब भी निकलता हूं घर से
होता हूं बाजार में, जाने क्यूं ख्याल आती हैं।।
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इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।
ख्याल आना
जब भी निकलता हूं घर से होता हूं बाजार में, जाने क्यूं ख्याल आती हैं।।
सफलता की ओर
कौन कहता है, इश्क़ में नाक़ाम हुए नाक़ाम हुए तो नाकामियां तो बताए कोई।
फरिश्ता
ये पलकें ही क्यों हुई नम, ऐ गुलनार, तेरे इश्क़ में। तुम कौन सा फ़रिश्ता हो तेरे गम में जो ये झील, सदा ही डूबी रहती हैं।।