Gulnar "Musafir" with Love Shayari (गुलनार "मुसाफ़िर", लव वाली शायरी)
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बुधवार, 1 फ़रवरी 2023
इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं
इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो...
जिसका जिक्र संभव नहीं।
परे से परे
तुम सिर्फ चाहत (इश्क़) नहीं थी
उससे भी परे, परे थे तुम।
ये ना सोच तू
जिस्म की हवस, जिस्म की भूख
और कहानी ख़तम, बल्कि
इनसे भी परे हो तुम।
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इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।
ख्याल आना
जब भी निकलता हूं घर से होता हूं बाजार में, जाने क्यूं ख्याल आती हैं।।
वक्त
"मुसाफिर" को जिस दिन वक्त का साथ हुआ जनाब पंछी को जमीनी पर ना उचरने दूंगा।।
इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।