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मंगलवार, 10 अगस्त 2021

ढल चुका हैं मेरे ख्वाबों का सूर्यास्त
जो कभी जगमगाता था, बन कर प्रभात
अब कभी सूर्योदय ना होगा, उन ख्वाबों का
जो कभी जिन्दगी बन कर, चहक महक रहे थे।।

इश्क जिस्मानी नही

इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।