होने से हो सकता था, यूं गमो का सिलसिला थम सकता था, परिवर्तन हो सकता था, दिलो से दिलो को मिलाने का यत्न हो सकता था, गर तुझसे अपने ही स्वीकार होते।।
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रविवार, 23 जनवरी 2022
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इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।
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जब भी निकलता हूं घर से होता हूं बाजार में, जाने क्यूं ख्याल आती हैं।।
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कौन कहता है, इश्क़ में नाक़ाम हुए नाक़ाम हुए तो नाकामियां तो बताए कोई।
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ये पलकें ही क्यों हुई नम, ऐ गुलनार, तेरे इश्क़ में। तुम कौन सा फ़रिश्ता हो तेरे गम में जो ये झील, सदा ही डूबी रहती हैं।।