जिन्दगी ने शतरंज की चाल चली मेरे साथ
मेरे हर प्याले को, मुझसे ही छिनसा रहा।।
जिन्दगी के शतरंज में ऐसी मात खाई मैंने
के, एक भी प्याला ना रहा मेरा।।
मात पर मात खाई शतरंज में मैंने
फिर भी निरन्तर पथ पर बढ़ता रहा।।
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।