Gulnar "Musafir" with Love Shayari (गुलनार "मुसाफ़िर", लव वाली शायरी)
सम्हर भी जाऊ और ना भी
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शुक्रवार, 21 जनवरी 2022
जिंदगी
कोई मौका ना छोड़ती ये जिन्दगी
मुझे नीचे गिराने के लिए।
मैं सम्हल कर भी ना सम्हर पाऊं
और, सम्मल कर भी सम्मल जाऊं।।
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इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।
ख्याल आना
जब भी निकलता हूं घर से होता हूं बाजार में, जाने क्यूं ख्याल आती हैं।।
वक्त
"मुसाफिर" को जिस दिन वक्त का साथ हुआ जनाब पंछी को जमीनी पर ना उचरने दूंगा।।
इश्क जिस्मानी नही
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।