जहां ने कभी समझा नहीं
गुलनार ऐ मुसाफ़िर, तेरे इश्क़ को
आम दीवाना ही समझा, इस दीवाने को।।
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।
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