शनिवार, 24 जुलाई 2021

 वह रात थी हिज़्र की

शब ए हिज़्र की थी रात।।

 ख़ुदा की खुदाई क्या होती हैं

बस...

गुलनार द मुसाफ़िर, प्रेम कहानी होती हैं।।

 इश्क़ में मुकाम चाहे जो भी हो

मगर, इश्क़ मुकम्मल होना चाहिए।।

 वो चाहत ही क्या

जिसमें तड़प ना हो।।

 मोहब्बत गैर ना थी

इश्क़ वाली गैर थी।।

 तू रूहानियत से भरी, जिंदगानी थी।।

 किसी के हिस्से में आए तुम

किसी के खुश नशिबी 

मेरे हिस्से, हिज़्र

और हिज़्र नशीबी।।

 दोनों के राह अलग तलक

मंजिलें तलक, तो

तक़दीर दोनों इक कहां।।

 तू थी तो क्यों थी

तू ना हैं तो क्यों ना है।।

 गर तू होती तो क्या होती

सोच के, होती, तो क्या होती।।

 हर किसी को मोहब्बत कहां

हर एक तरफा चाहत में, मुकम्मल चाहत कहां!!

खंजर कैसे चल जाए, हाथ कैसे चल जाए

किसी की जान, एक तरफे इश्क़ में कैसी चली जाए।।

 इश्क़ हो या ना हो, पर इश्क़ खुदा होना चाहिए

इक तरफे इश्क़ में भी, रूहानियत होनी चाहिए ।

 विरह की रात हो या हिज़्र का फ़रमान

इश्क़ तब भी होता हैं, इश्क़ जब भी होता हैं।।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

 देखें थे जिनके ख़्वाब वो, इतने आसां टूट गए

कर के हमसे मोहब्बत, वो हम से ही जूदा हो गए।।

उनके जिन्दगी के, चंद लम्हों के
चंद लफ्जों के, चंद यादें सदाबहार।।

 एक जमाना था जिससे हम मुहब्बत करते थे

आज एक जमाना हैं जो हम से मोहब्बत करता हैं।।

 नियति के नियम अजब है

मिलना बिछड़ना ये भी गज़ब है।।

न तू चाहिए न तेरी मोहब्बत

इश्क़ हूं, सिर्फ तड़प चाहिए।।

 न सोच यूं मेरे बारे में

मैं वो पल हूं... जो बीच चुका हैं।।

इश्क जिस्मानी नही

इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।