सोमवार, 24 जनवरी 2022

शतरंज सी जिंदगानी अपनी

जिन्दगी ने शतरंज की चाल चली मेरे साथ
मेरे हर प्याले को, मुझसे ही छिनसा रहा।।

जिन्दगी के शतरंज में ऐसी मात खाई मैंने
के, एक भी प्याला ना रहा मेरा।।

मात पर मात खाई शतरंज में मैंने
फिर भी निरन्तर पथ पर बढ़ता रहा।।

शुप्रभास, तेरी इक और  सुबह की
मेरे मौत के दिन ओर करीब आने की,
तुझे, शुप्रभास।।

तेरे नाम की सुबह हुई हर रोज
बस! इक तू ही नही...

तेरी सुबह हुई, शायद मुझसे पहले
तेरी उसी सुबह को,
तेरी सुबह को फिर सलाम,
मुझसे भी खुश नसीब हैं।।

रविवार, 23 जनवरी 2022


तुम जान तो ना थी मेरी, मगर जां से भी बड़ कर थे 
मशला तुम्हारी शख्सियत का नहीं,मेरी रूहानी चाहत का हैं, वह चाहत जो देह धारी से परे हैं।।

होने से हो सकता था, यूं गमो का सिलसिला थम सकता था, परिवर्तन हो सकता था, दिलो से दिलो को मिलाने का यत्न हो सकता था, गर तुझसे अपने ही स्वीकार होते।।
ये पलकें ही क्यों हुई नम,
 ऐ गुलनार, तेरे इश्क़ में।
तुम कौन सा फलिस्ता हो
तेरे गम में जो ये झील, सदा ही डूबी रहती हैं।।

दुनियां चाहे कितना ही बहाना बनाएं
जो हक़ीक़त हैं, हक़ीक़त ही रहेगी।।

तू खुदा तो नहीं, खुदा समान था
तू मोहब्बत नहीं, इश्क़ था।।

शनिवार, 22 जनवरी 2022

रंग बदलना तुम्हारा

देख लिया तुझे भी मैंने, रंग बजलू हो तुम भी
खुद पर आई तो इल्जाम मुझ पर सा संवार दिया।।

रूहानियत पन


खुदा की रूहानियत हैं तुझमें

उसकी बनी कोई मूरत हैं तू।।

खबर

क्या खबर तेरी,और क्या क्या खबर मेरी
ये वक्त ही हैं, जो रखता हैं खबर सबकी।।

गुरुवार, 20 जनवरी 2022

क्या हाल हुए जनाब के


देख, मेहबूब मेरे
क्या हाल हैं जनाब के।।

याद, बेशक हैं जिस्म के रूप में उनकी
पर, इश्क़ तो
उनके परे के परे हैं।।

सुबह हो चली
ओर याद में उनके, शब्द गड़े जा रहे।।

बस! ये जस्तुर ना था हमारा


बस!
एक बिसर ना हुए
वगरना...
आज...
वो, वो ना होते
हम, हम ना होते।।

क्या फ्रक पड़ता है, जिस्म के संग ना हैं।।

गवाया ही कब उसे


असल में उसे कभी गवायां ही नहीं
अब भी हैं मेरे ही पास।।

गवां कर हैरान हुआ


सोच कर बड़ा हैरान था, 
दुखी ओर मायूस था
कई दिन, कुछेक साल बिछा दिए
इसी गम के माहौल में,
के उस शख्सियत को गवां दिया
जो मेरा हो सकता था।।

इश्क़ वहीं जो परे हो

 
इश्क़ जिस्म से नहीं, तुझ से नहीं
तुझ से_जिस्म से परे से है।।

होता ही क्या इक जिस्म के अतिरिक्त


मिल जाते, एक हो जाते
फिर होता क्या...!
आज मैं या तुम ना होते
एक जिस्म होते!!

कुछ ना गवाया, इक जिस्म के अलावा


ना सोचू मैं, के मैंने तुझे गवाया
गवाया ही क्या, एक जिस्म ही
जिस्म ही गवाया, उसे नहीं।।

आज पहली तारीख, पहला दिन, पहली मोहब्बत
इश्क़ पहला, शख्सियत पहली, रुसवा पहला।।

दूर हो कर भी पास मेरे तुम


क्या हुआ आज जो मेरे पास ना हो
सोच...
फिर भी तुम मेरे पास हो।।

तुझे खोया ही कब


खो कर भी मैंने तुझे पाया
चाह कर भी मैंने, तुझे चाहा।।

तूने क्या नहीं पाया,


तू ना सोच मुझे गवां दिया
खो के भी बहुत कुछ पाया तूने
मेरी वाणी में, मेरी शक्सीयत
तूने ही राज जमाया।।
ओर बात होती, मैंने तुझे गवां दिया होता
गवां के फिर, कभी याद ना किया होता।।

मुझे तेरे जिस्म से इश्क नहीं


दो जिस्म एक हो जाय तो क्या
उस जिस्म से मुझे कोई आश नहीं
मुझे इश्क़ हैं तेरी रूहानियत से
इश्क़ हैं मुझे, तेरे जिस्म से परे से।।

मेरा ही हैं जाँ तेरी


तू ना हुआ तो क्या हुआ, ना होके भी, तू मेरा हैं
इतना जान ले, हो कर भी तू मेरा हैं ओर
हो कर भी मेरा ही हैं।।

बुधवार, 19 जनवरी 2022

अच्छा ही रहा नसीब अपना, जो कुछ ना तेरे मेरे बीच।


कुछ अच्छा ही रहा होगा, तेरे मेरे बीच
जो एक आंच भी ना आई, मेरे और तेरे बीच।।

तेरा रुतबा मेरी ना होने से हैं...

तेरा रुतबा ना होता
होते तुम, "बेगम" मेहरबानी,
ख़्याल तेरा नायाब ना होता
गर होते तुम, "बेगम" मेहरबानी,
रूहानियत ना होती
लब्जो ओर शब्दों में
अगर होते तुम, मेरे "बेगम" मेहरबानी।।

खुशनसीब तेरी हर सुबह। शुप्रभास।

शुप्रभास, तेरी इक और  सुबह की
मेरे मौत के दिन ओर करीब आने की,
तुझे, शुप्रभास।।

तेरे नाम की सुबह हुई हर रोज
बस! इक तू ही नही...

तेरी सुबह हुई, शायद मुझसे पहले
तेरी उसी सुबह को,
तेरी सुबह को फिर सलाम,
मुझसे भी खुश नसीब हैं।।
ये रास्ता,मार्ग
डगर, ये पगडंडी सा
निशां हैं तेरे,
वहीं पगडंडी, वहीं रास्ता
वहीं दिशा, वहीं एहसास
उसके राह पर, आज फिर सफर मेरा था।

इश्क जिस्मानी नही

इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।