वह रात थी हिज़्र की
शब ए हिज़्र की थी रात।।
ख़ुदा की खुदाई क्या होती हैं
बस...
गुलनार द मुसाफ़िर, प्रेम कहानी होती हैं।।
इश्क़ में मुकाम चाहे जो भी हो
मगर, इश्क़ मुकम्मल होना चाहिए।।
वो चाहत ही क्या
जिसमें तड़प ना हो।।
मोहब्बत गैर ना थी
इश्क़ वाली गैर थी।।
तू रूहानियत से भरी, जिंदगानी थी।।
किसी के हिस्से में आए तुम
किसी के खुश नशिबी
मेरे हिस्से, हिज़्र
और हिज़्र नशीबी।।
दोनों के राह अलग तलक
मंजिलें तलक, तो
तक़दीर दोनों इक कहां।।
तू थी तो क्यों थी
तू ना हैं तो क्यों ना है।।
गर तू होती तो क्या होती
सोच के, होती, तो क्या होती।।
हर किसी को मोहब्बत कहां
हर एक तरफा चाहत में, मुकम्मल चाहत कहां!!
खंजर कैसे चल जाए, हाथ कैसे चल जाए
किसी की जान, एक तरफे इश्क़ में कैसी चली जाए।।
इश्क़ हो या ना हो, पर इश्क़ खुदा होना चाहिए
इक तरफे इश्क़ में भी, रूहानियत होनी चाहिए ।
विरह की रात हो या हिज़्र का फ़रमान
इश्क़ तब भी होता हैं, इश्क़ जब भी होता हैं।।
देखें थे जिनके ख़्वाब वो, इतने आसां टूट गए
कर के हमसे मोहब्बत, वो हम से ही जूदा हो गए।।
एक जमाना था जिससे हम मुहब्बत करते थे
आज एक जमाना हैं जो हम से मोहब्बत करता हैं।।
नियति के नियम अजब है
मिलना बिछड़ना ये भी गज़ब है।।
न तू चाहिए न तेरी मोहब्बत
इश्क़ हूं, सिर्फ तड़प चाहिए।।
न सोच यूं मेरे बारे में
मैं वो पल हूं... जो बीच चुका हैं।।
मायूस न हो... वक्त मेरे
तू कल भी ठीक था, और
आज भी... ठीक ही हैं।।
वह परी भी ख़ास थी, वह पंछी भी ख़ास थी
वह गुलाब भी ख़ास था, वह फूल भी ख़ास था
बस, भवरे की चॉइस थी ग़लत।।
तेरी ये नादानियां याद रहेगी सदा
तेरी ये नादानियां गुनहगार हो गई।।
तुम्हारी नादानी समझू या समझू तेरी जिद
जो मुझे बर्बाद कर दिया।।
जहां ने कभी समझा नहीं
गुलनार ऐ मुसाफ़िर, तेरे इश्क़ को
आम दीवाना ही समझा, इस दीवाने को।।
किसी के तुम हो किसी का खुदा हैं दुनियां में
मेरे नसीब में तुम भी नहीं खुदा भी नहीं।।
_ अख्तर सईद खान_
आवाज़ में वो दम नहीं
जो कह कर तुम्हें दिल का हाल कहे!
लिखना कोई शौक नहीं
दर्दे हाल...!!
बस यही प्रॉब्लम की
तारीफ ही ना कर सकू
तारीफ भी ना सकू।।
उसने हक़ भी छीन लिया
उसने हक़... भी, छीन लिया
अब तारीफ करे भी तो...
किस नाते, किस...रिश्ते।।
जिस्म की चाह ख़ाक कर देगी
इश्क़ की तड़प,
नूर कर देगी जन्नत कर देगी।।
*नूर= रूहानियत के परे की पवित्रता।
ऐ गुल, ऐ गुलनार
कौन कहता है के
जनाब ने मूड कर ना देखा।।
जिसने पानी तेरी आंखों में
उतना ही गम मेरे सीने में।।
बेखबर हूं बेखबर ही रहने दो
अपनी जिन्दगी में ठीक हूं,
तुम्हारी जिंदगानी में दखलंदाजी ना होने दो।।
ना जिस्म चाहा, न संग तेरे रातें
चाहा सिर्फ तुमको, तुझसे ही।।
फिक्र ना मेरी खुद की, ना तेरी फिकर
फिकर हैं मेरे उस प्यार की, जो
काया और जिस्म जां से परे हैं।।
तू नेक थी, भक्ति भाव थी
तुझमें सारे वे गुण थे
जो तुम में ही होने चाहिए था
पर, तेरी नेकी,
इस जनाब के तकदीर को, रास ना आई।।
तेरी सूरत, उस चंद में देखता हूं
जो तेरी शक्ल से मिलता तो नहीं
मगर, तेरी याद, बेशक दिला जाती है।।
*चंद= चांद, चंद्रमा
उनकी उम्मीदों पर होना होना तुम
ना उम्मीद कभी ना होना तुम।।
हर कोशिश...होती हैं, तुझे पहचानने की
तेरे जैसा जो शक्स...मिल जाय।
पर, गुड न्यूज ये होती है,
की, उनमें तुम नहीं होते।।
मेरे शहर से एक रास्ता
तेरे घर का जाता है...
वैसे...
एक हीरा हमारे पास भी हैं
जो अन्य हीरो से कम नहीं
अर्धागिनी हमारी।।
तू जन्नत हैं इश्क़ का
तू मुकाम हैं मोहब्बत का
ऐ गुल, ऐ गुलनार...
तू चाहत हैं "मुसाफ़िर" का।।
आखिर, मुकाम होगा क्या
ख़ुद मुसाफ़िर को ना पता।।
ना जिद की, ना जिद पर अड़े
जो हुआ होने दिया।।
मैं मुसाफ़िर हूं उस चाहत का
जिस वजह ये मुसाफ़िर, गुलनार "मुसाफ़िर" हुआ।।
ना जिस्म चाहा ना संग तेरे राते
चाहा सिर्फ तुमको, तुझ से ही!!
न तू चाहिये न तेरी मुहब्बत
इश्क़ हूं सिर्फ तड़प चाहिए!!
इश्क़ कोई जिस्म या शारीरिक संबध नहीं इश्क़ वह रूह, रूहानियत होती है, जो... जिसका जिक्र संभव नहीं।